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Grey Matters, भारत भर में फैले हुए अपने 56 केंद्रों में हर महीने 7,000 से 8,000 छात्रों को सलाह देते हैं, यह उन कुछ केंद्रों में से हैं, जो भारत से बाहर अपने वयस्क जीवन शुरू करने की चाह रखने वाले युवा भारतीयों के लिए वन-स्टॉप शॉप माने जाने वाले चंडीगढ़ के सेक्टर – 17 के विशाल मार्केट, रिटेल स्टोर और शिक्षा संस्थानों के बीच स्थित है।PRIYANKA PARASHAR/The Globe and Mail

ग्रामीण पंजाब से लेकर सबअर्बन Brampton, Ontario तक, एक ऐसा फलता-फूलता उद्योग है, जो हर साल हज़ारों की संख्या में भारतीयों को यहाँ लेकर आता है – लेकिन, जहां इस से नियोक्ताओं और सिक्षा संस्थान को लाभ होता है, वहीं छात्र सहयोग की कमी की वजह से लड़खड़ा जाते हैं।

मनजिंदर सिंह, खुशी से फूले न समाते हुए, अपनी माँ के साथ, चंडीगढ़ की एक शिक्षा कंसल्टेंसी, Grey Matters में, बहुत से मिल्क केक के मिठाई के डिब्बे लिए हुए दाखिल होते हैं।

श्री सिंह का कनाडा का वीज़ा अभी-अभी आया है और वे यहाँ अपना आभार प्रकट करने के लिए आए हैं। 18 साल के श्री सिंह कंसल्टेंसी की संस्थापक, सोनिया धवन को एक उपहार की तरह लिपटा हुआ मिठाई का डिब्बा भेंट करते हैं, जो उन्हें कनाडा और अमेरिका के झंडों के पास लगी हुई हिंदुओं के गणेश भगवान की मूर्ति को पहले चढ़ाने का आग्रह करती हैं। यहाँ पर राज करने वाला चिन्ह मेपल का पत्ता है – जो सलाह कक्ष की दीवारों पर चिपका हुआ है, हर कोने में टंगे हुए रंग-बिरंगे फ्लायर्स पर बना हुआ है, और यहाँ तक कि सुश्री धवन के ब्लेज़र पर एक छोटे से सुनहरे ब्रूच के रूप में भी लगा हुआ है। डाउनटाउन वेंकूवर में एक निजी यूनिवर्सिटी में पढ़ने की अनुमति देने वाले अपने वीज़ा के आगमन की खुशी मनाते हुए, एक छोटी सी पूजा करने के बाद, श्री सिंह ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कमरे में मौजूद सभी लोगों को मिठाइयां बांटीं।

Grey Matters, भारत भर में फैले हुए अपने 56 केंद्रों में हर महीने 7,000 से 8,000 छात्रों को सलाह देते हैं, यह उन कुछ केंद्रों में से हैं, जो भारत से बाहर अपने वयस्क जीवन शुरू करने की चाह रखने वाले युवा भारतीयों के लिए वन-स्टॉप शॉप माने जाने वाले चंडीगढ़ के सेक्टर – 17 के विशाल मार्केट, रिटेल स्टोर और शिक्षा संस्थानों के बीच स्थित है।

पूरे देश में स्थित ऐसे व्यवसाय मनजिंदर जैसे लाखों छात्रों को हर साल कनाडा भेजते हैं– सबसे हाल की अवधि, जिसका डाटा मौजूद है, उसके हिसाब से 2018-2019 शिक्शा सत्र के दौरान 105,192 छात्र कनाडा की यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों में भर्ती किए गए। उनसे नई ज़िंदगी, नौकरियों, घर, संपन्नता का वादा किया जाता है और – संघीय सरकार द्वारा 2009 में प्रोग्रामों की शृंखला की घोषणा करना जिस से भारतीय छात्रों के लिए द्वार और भी ज्यादा खुल गए – सर्वोत्तम ईनाम : कनाडा की नागरिकता, प्राप्त करने का अवसर।

लेकिन कई लोगों के लिए, यह सपना हक़ीक़त से मेल नहीं खाता।

पश्चिम की ओर, कुछ घंटों की ड्राइव के बाद, अपने दूर-दूर तक फैले गेंहू और धान के खेतों के लिए मशहूर, पंजाब के मोगा जिले में, जोगिंदर सिंह गिल जी बिना रोए अपने बेटे के बारे में बात करने की कोशिश कर रहे हैं। तीन साल पहले, लवप्रीत को भी श्री सिंह जैसी ही खुशी मिली थी जब उसको उसका छात्र वीज़ा मिल था : यह उसके लिए साधारण सी ग्रामीण ज़िंदगी और स्थानीय सरकारी शिक्षा से निकल पाने का एक टिकट था। लेकिन इस पिछले अप्रैल में, वह 20 वर्षीय युवक, जो Brampton में रहता था और करीबी Centennial College में होटल मैनेजमेंट पढ़ता था, एक ट्रेन के सामने कूद गया।

“लोगों ने उसकी मौत की वजह को लेकर बहुत सी बातें कहीं। कुछ लोगों ने कहा कि वह ड्रग्स लेने लगा होगा, कुछ ने कहा कि उसने शायद कोई गैंग जॉइन कर लिया होगा। लेकिन मैं अपने बेटे को जानता हूँ। ज़रूर कुछ बहुत गम्भीर हुआ होगा। मुझे शक़ है कि पैसे को लेकर कोई बात रही होगी,” श्री गिल ने कहा।

दुख मनाते पिता ने जवाब ढूँढने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनके पास जवाब पता करने के लिए कनाडा जा पाने के संसाधन नहीं हैं। उनके बेटे की मृत्यु इस गंभीर वास्तविकता को प्रतिबिंबित करती है कि, यहाँ पर आए हुए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के साथ क्या-क्या हो सकता है। वे यहाँ पर नाम के सहयोगों के साथ आते हैं, और उन्हें पता चलता है कि अच्छे पैसे देने वाली नौकरी बहुत मुश्किल से ही मिलती है, भाषा कौशल ना होने के कारण उन्हें पढ़ाई में भी संघर्ष करना पड़ता है, और उन्हें बेकार से घरों में रहना पड़ता है क्योंकि वे उसी तरह का आवास ले पाने में समर्थ होते हैं। कुछ अपने शिक्षा के साथ संघर्ष करते हुए, अंत में यहाँ पर अपना जीवन स्थापित कर भी लेते हैं, लेकिन अन्य लवप्रीत जैसे लोगों के लिए चुनौतियाँ दुर्गम होती हैं।

Sheridan College - Brampton, Ontario का एक सरकारी कॉलेज, भारत में इतना प्रसिद्ध है, कि उसका नाम एक पंजाबी हिप-हॉप गाने तक में लिया गया है – उसने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए अपनी उग्र विकास रणनीती 2018 में तब वापिस ली, जब सिटी के अधिकारियों और सामुदायिक अधिवक्ताओं द्वारा इन छात्रों का समर्थन करने के लिए सामाजिक बुनियादी ढांचे की कमी के बारे में चेतावनी जारी की गई। एक स्थानीय मुर्दाघर ने हाल में देखे गए हालातों को एक संकट का नाम दिया है : वह हर महीने तकरीबन चार से पाँच अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की मृत्यु के बाद के प्रबंध करता है – तकरीबन सभी की मृत्यु का कारण संभावित आत्महत्या या ज़्यादा ड्रग्स लेना होता है। पश्चिमी कनाडा में एक उत्तर-माध्यमिक संस्थान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों पर एक प्रमुख अध्ययन में, एक अध्यापक मंडली के एक सदस्य ने कहा कि मकान मालिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों को “मूल रूप से ज़मीन में एक गड्ढा देते हैं जिसे छात्र किसी भी कीमत पर लेने के लिए तैयार हो सकते हैं।”

कनाडा में उत्तर-माध्यमिक शिक्षा के लिए सरकारी समर्थन एक दशक से अधिक समय से रुका हुआ है, इसलिए कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की भर्ती करके यह अंतर कम करने की कोशिश की है, और इन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से घरेलू छात्रों की तुलना में चार गुना ज़्यादा ट्यूशन फीस ली जाती है। हायर एजुकेशन स्ट्रैटिजी एसोसिएट्स (Higher Education Strategy Associates ) की रिपोर्ट के मुताबिक 2007 के शिक्शा सत्र से लेकर 2018 के शिक्शा सत्र तक, अंतर्राष्ट्रीय छात्र राजस्व 1.5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 6.9 बिलियन डॉलर हो गया। संघीय सरकार के डाटा के अनुसार, कुछ शिक्षा संस्थानों ने अपना अंतर्राष्ट्रीय छात्र हिस्सा 2013 से 2020 के बीच 40 प्रतिशत से भी ज़्यादा बढ़ाया है।

भारत, बड़े हिस्से में सबसे बड़ा स्रोत देश बन गया है क्योंकि यह बढ़ती हुई मध्य-वर्ग की आबादी का घर है और इस मध्य-वर्ग की इंग्लिश दक्षता अपेक्षाकृत उच्च स्तर की है।

भारतीय छात्रों को कनाडा पढ़ने के लिए लेकर आना, दो महाद्वीपों के बीच फ़ैला हुआ एक आकर्षक व्यवसाय बन गया है। भारत में भाषा सिखाने के स्कूल, नियोक्ता, अप्रवास सलाहकार और ऋण देने वाले लोग हैं, जिन्होंने भारत से बाहर पढ़ने की सनक से खासा मुनाफा कमाया है। छात्रों के कनाडा पहुँच जाने के बाद, उत्तर-माध्यमिक संस्थानों, मकान-मालिकों, अप्रवास सलाहकारों और नियोक्ताओं को उनकी बढ़ती उपस्थिति से फ़ायदा होता है।

लेकिन इन छात्रों की स्थिति– निवासी, लेकिन अप्रवासी नहीं; कर्मचारी, लेकिन सप्ताह में केवल 20 घंटे तक के रोजगार की अनुमति; किरायेदारों, लेकिन अक्सर पट्टेदार नहीं – पक्षधारक समूहों का कहना है कि इसका मतलब है कि वे दरार के बीच गिर जाते हैं।

“सभी के पास इस व्यवस्था का छोटा सा हिस्सा है। और एक छोटा सा हिस्सा भर होने से वे पूरे परिदृश्य से अनजान हैं,” Peel क्षेत्र के एक गैर-लाभकारी संगठन, इंडस सामुदायिक सेवा Indus Community Services के कार्यकारी निदेशक गुरप्रीत मल्होत्रा कहते हैं।

उनका समूह जिन छात्रों के साथ काम करता है, उन में से ज़्यादातर Brampton में रहते हैं – एक ऐसा शहर जहां की लगभग आधी आबादी दक्षिण एशियाई मूल की है – जिसमें पूर्वोत्तर में L6P क्षेत्र भी शामिल है, जो किराये पर Brampton मिलने और क्षेत्र के कई उत्तर-माध्यमिक संस्थानों तक आसान पहुँच के कारण अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए आकर्षण बन चुका है। उन्होंने कहा, कि महामारी ने यह साबित कर दिया कि पील क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय छात्र ही सबसे ज़्यादा असुरक्षित लोग हैं।

श्री मल्होत्रा की एजेंसी द्वारा इस फॉल में प्रकाशित एक निन्दात्मक रिपोर्ट ने साफ़-साफ़ कहा : पूंजीगत लाभ पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के “मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की जाती है”।


कनाडाई कैम्पसों पर भारत की छाप

पिछले कुछ सालों में, अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने कनाडा में उत्तर-माध्यमिक दाखिलों के बढ़ते हुए हिस्से का प्रतिनिधित्व किया है - और भारत सबसे बड़ा स्रोत देश बन गया है। यहां बताया गया है कि जिन कॉलेजों में ज़्यादातर भारतीय छात्र रजिस्टर्ड हैं, उन में मूल देश के आधार पर किस-किस देश के कितने प्रतिशत लोग हैं।

जब 25 साल पहले सुश्री धवन ने Grey Matters की शुरुआत की थी, तब भारतीय छात्र पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना चाहते थे। लेकिन समय के साथ अमेरिका उनकी वरीयता बना, फिर इंग्लैंड। अब “कनाडा को ही पसंद किया जा रहा है” वे कहती हैं। वे इसका श्रेय काफ़ी हद तक स्टूडेंट पार्टनर्स प्रोग्राम को देती हैं, जिसे Stephen Harper की कंजर्वेटिव सरकार ने 2009 में भारतीय छात्रों के लिए आवेदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए लॉन्च किया था, विशेष रूप से, उन छात्रों के लिए, जो कुछ उन भाग लेने वाले दर्जन भर कनाडाई कॉलेजों में पढ़ना चाहते थे।

एक साल के भीतर ही, सरकार अपनी जीत का जश्न भी मना रही थी : भारतीय छात्रों के आवेदन की स्वीकृति की दर दोगुनी हो चुकी है। और जबकि बाद में इस कार्यक्रम का विस्तार चीनी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को भी शामिल करने के लिए किया गया, यहाँ चीनी छात्रों का भारी बहुमत कनाडा के यूनिवर्सिटियों (83 प्रतिशत) में भर्ती है। जबकि, अधिकतर भारतीय छात्र कॉलेजों में दाखिल हैं (73 प्रतिशत)। The Globe ने जिन छात्रों और नियोक्ता व्यवसायों का इंटरव्यू लिया था, उनके अनुसार, ऐसा इसलिए है, क्योंकि अधिकतर भारतीय कनाडा में सीखने के लिए नहीं बल्कि रहने के लिए आते हैं, और यहाँ पर बसने का सबसे सस्ता और तेज़ रास्ता है किसी भी कॉलेज प्रोग्राम में रजिस्टर करना (स्टूडेंट वीज़ा पर कनाडा आने के बाद, उन्हें स्नातकोत्तर कार्य पर्मिट मिल सकता है, जिससे वे स्थायी निवास और आगे चल कर कनाडाई नागरिकता के लिए आवश्यक रोज़गार घंटों को लॉग करना शुरू कर सकते हैं)।

जैसे-जैसे बाहर जा कर पढ़ाई करने के इच्छुक भारतीय छात्रों के गंतव्य की वरीयताएं बदल रही हैं, उसी तरह जिस शहर से वे बाहर जा रहे हैं, वे भी बदल रहे हैं।

पंजाब के दक्षिण-पूर्व का एक शहर, पटियाला, जो उत्तर भारत के कृषि प्रधान क्षेत्र में स्थिरता से स्थित है, गेहूं, धान और गन्ने के लहलहाते खेतों से घिरा हुआ है। यह एक बढ़ता हुआ औद्योगिक केंद्र भी है। लेकिन अगर आप कभी इस शहर से गुज़रेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि यहाँ के निवासियों की आकांक्षाएं कहीं और बसती हैं। इमारतों के ऊपर “कनाडा में पढ़ें (Study in Canada) के बड़े बड़े बोर्ड लगे हुए हैं, बिजली के खंभों की कतारों पर “देश से बाहर बसें (Settle Abroad)” के पोस्टर चिपके हुए हैं और स्थानीय अखबार में IELTS, एक इंग्लिश प्रवीणता का टेस्ट जिसमें छात्रों को कनाडा के कॉलेज या यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए अच्छा स्कोर लाना होता है, की तैयारी करवाने के कोर्स के इश्तिहार भरे हुए होते हैं।

पहले छात्र भारत के बड़े शहरों से आते थे, ज़्यादातर उनके पास कोई ना कोई डिग्री होती थी और थोड़ी दुनियादारी की समझ भी होती थी। अब वे और अधिक संख्या में छोटी नगरपालिकाओं और खेती करने वाले गांवों से भी आ रहे हैं, और The Globe द्वारा भारत के सलाहकारों और कनाडा में पक्ष समर्थन समूहों के लिए गए इंटरव्यू के अनुसार, अब वे अक्सर हाई स्कूल खत्म करने के बाद ही चले जाते हैं।

अपने देश में अपने बच्चों के लिए सीमित अवसर देख कर, भारत के ग्रामीण परिवार – खास तौर पर पंजाब के – उन्हें देश से बाहर जा कर बेहतर जीवन की तलाश के लिए प्रेरित करते हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में राज्य से 150,000 छात्र देश से बाहर पढ़ने के लिए गए। Grey Matters में आने वाले कुछ छात्रों को तो ज़रा भी अनुभव नहीं होता, और कंपनी को उन्हें प्लेन में चढ़ना या फ्लाइट के वॉशरूम का प्रयोग करने के निर्देश भी देने पड़ते हैं।

पटियाला में, एक चौड़ी सड़क, धान के खेतों से घिरी एक पतली तारकोल से बनी सड़क में तब्दील हो जाती है जो हमें मंडौर गाँव में लेकर जाती है, जहां नरिंदर सिंह बड़ा हुआ।

उनके परिवार ने उन्हें 2017 में कनाडा भेज दिया था, जहां उसने Windsor, Ontario के St. Clair College में रजिस्टर किया। Ontario भर के कॉलेजों में दाखिल बहुत से छात्रों की तरह उसने भी Brampton में रह कर दूरस्थ शिक्षा प्राप्त की। कनाडा में इस शहर में सबसे ज़्यादा पंजाबी अप्रवासी रहते हैं और यह कनाडा आकर रहने के लिए बाकी जगहों से बेहतर जगह है: यहाँ आराम से गुरुद्वारे मिल जाते हैं, ऐसे रेस्त्रां हैं जहां जाना पहचान खाना मिल जाता है और ऐसे पंसारी हैं जो भारत के सर्वप्रिय इन्स्टेन्ट नूडल्स, मैगी अपनी दुकानों में रखते हैं।और अब तो ऐसी स्थिति है कि यदि कोई युवा व्यक्ति पंजाब से कनाडा तक का सफर करना चाहता है तो बहुत संभावना है कि उनके ही शहर का कोई कज़न (रिश्तेदार भाई या बहन) या जान-पहचान वाला वहाँ पर पहले से ही रहता होगा जो नए देश में जीवन की शुरुआत करने में उनकी सहायता करेगा।

Brampton में ही बहुत से उत्तर-माध्यमिक संस्थान भी हैं। Sheridan, Algoma University और Canadore College – इन सभी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संस्थाओं – के कॅम्पस Brampton में हैं। शहर में 60 से ज़्यादा निजी कॉलेज भी हैं, जिनमें से कई स्ट्रिप मॉल्स और प्लाज़ा में घुसा कर बनाए गए हैं। पटियाला के एक स्टडी अब्रॉड (बाहर पढ़ने जाने) की कंसल्टेंसी, Broadway Consultants में 80 प्रतिशत छात्र Brampton जाना पसंद करते हैं, क्योंकि वहाँ इतने सारे निजी कॉलेज हैं जो किफायती हैं और जिनमें कम भाषा दक्षता स्कोर के साथ भी दाखिला मिल जाता। Broadway के डायरेक्टर, बलजिंदर सिंह कहते हैं,”वे लोग डिग्री नहीं पाना चाहते बल्कि एक बेहतर ज़िंदगी और पैसा पाने का रास्ता चाहते हैं।”

जिस दिन नरिंदर अपने गाँव से कनाडा के लिए रवाना हुआ, उस दिन उसने एक काला टक्सीडो (कोट और पैन्ट) पहना था और अपने बाल बड़े अंदाज़ से पीछे की तरफ चिपका लिए थे। वह यह यात्रा करने वाले पहले कुछ लोगों में से था, और आने वाले सालों में उसके कई भाई-बंधु और पड़ोसी भी वहाँ पहुँच गए।

उसके पड़ोस के घर में, नरिंदर का रिश्तेदार भाई चरणवीर भी Brampton में अपने भाइयों के पास जाना चाहता है। वह पटियाला की एक फैक्ट्री में हर महीने बिना किसी भत्ते के केवल $136 कमा रहा था। उसने वह नौकरी छोड़ दी और अब वह हर रोज़ चार घंटे इंग्लिश भाषा की तैयारी करने की क्लास में जाता है और साथ ही एक स्थानीय कॉलेज में पूर्वस्नातक (अंडरग्रेड) की डिग्री इस उम्मीद के साथ हासिल करने में लगा है, कि इस से उसके दाखिले की संभावना शायद बढ़ जाए।

लेकिन उसने कनाडा के जीवन को लेकर और छात्रों की तरह सपने नहीं सँजोए है, क्योंकि नरिंदर ने उसको वहाँ की चुनौतियों के बारे में साफ़-साफ़ बता दिया है। वह कहता है “ऐसा नहीं है कि कनाडा में जीवन बहुत आसान है – नरिंदर कहता है कि वह भी संघर्ष कर रहा है”। दूसरे देश में बसना मुश्किल होता है, साथ में आपको पैसा बचाने और भविष्य की योजनाओं पर काम करने के बारे में भी सोचना पड़ता है। लेकिन बड़ा अंतर यह है कि वह वहाँ अच्छे पैसे काम रहा है, जो वह यहाँ पर नहीं कर सकता था।”


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चरणवीर के पड़ोस में अपने घर में सतनाम सिंह और दलजीत कौर परिवार की कुछ फ़ोटोएं दिखाते हुए। उनका बेटा, चरणवीर का रिश्तेदार भाई 2017 में कनाडा चला गया था।PRIYANKA PARASHAR/The Globe and Mail

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मंदौर के पूर्व में एक शहर पटियाला, भारतीयों को अप्रवास के लिए तैयार करने वाली कई कंपनियों का घर है।PRIYANKA PARASHAR/The Globe and Mail

मनताजवीर सिंह की कनाडा में जीवन के बारे में अपेक्षाएं कनाडा गए हुए उसके गाँव के लोगों की WhatsApp प्रोफाइल पिक्चरों से प्रभावित थीं। कुछ लोगों की फोटो में पीछे Niagara Falls नज़र आ रहे हैं तो कुछ ने अपनी फ़ोटोस में नई खरीदी हुई गाड़ियां या आलीशान मकान के सामने फ़ोटो खिंचवाई है। जब उसने अपना गाँव Chak Sarai छोड़, तो उसने कल्पना की थी कि मैं आलीशान मकान में जा कर रहूँगा और सप्ताहांत पर नए देश की प्राकृतिक सुंदरता निहारते हुए समय बिताऊँगा।

जब वह Toronto के Centennial College, Toronto, जहां के अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में 40 प्रतिशत भारतीय हैं, में प्रोग्राम शुरू करने के लिए पहले पहुंचा, तो वह किराये पर घर लेने से पहले Brampton में अपने परिवार के एक सदस्य के पास थोड़े से दिन रहा। वह $350 में केवल एक पुराने से मकान में किसी और के साथ साझेदारी में कमरा ले पाया, जहां सात और लोग पहले से रहते थे। उसे यह अनुभव अमानवीय लगा : रहने वाली जगह पर कीड़े रेंगा करते थे और बिना कोई नोटिस दिए पानी बंद कर दिया जाता था। मकान मालिक से मकान की बदहाली के बारे में शिकायत करने पर भी सुनवाई बहुत कम ही होती थी।

ऐसी किराये पर रहने की जगहें, ऐसी लिस्टिंग जो खास तौर पर छात्रों के लिए बनाई जाती हैं, कनाडा के ऐसे शहरों के इश्तिहारों में बहुत देखने को मिलती हैं जहां शिक्षा परमिट पर आए हुए भारतीय छात्र रहते हैं। ब्रैंपटन, जहां किराये के उद्देश्य से दिए जाने वाले घरों की बेहद कमी है, वहाँ पर छात्रों कि बेपनाह बढ़ती हुई भीड़ ने एक आकर्षक लेकिन खतरनाक भूमिगत अर्थ व्यवस्था को जन्म दिया है।

2019 में, Brampton में अवैध माध्यमिक इकाइयों के बारे में लगभग 1,600 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से कई बेसमेंट में थीं। शहर के फायर इन्स्पेक्टरों को बेहद भीड़भाड़ वाले कमरों वाले घरों में बुलाया गया है, जहां हर जगह लोगों के सोने के लिए गद्दे डाल दिए गए थे, यहाँ तक कि रसोई में भी। यह Brampton के सिटी कौंसिल में लगातार चर्चित मुद्दा है।

Globe and Mail ने जिन भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से बात की, उनमें से कई कॅम्पस में रहने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे– यह एक ऐसा आराम है जो केवल घरेलू छात्रों ही वहन कर सकते हैं। Brampton में, Sheridan के कॅम्पस में रहने के लिए सीमित आवास हैं, जिन में रहने के लिए छात्रों को बाहर किसी घर में कमरा लेने पर लगने वाले भाड़े से दोगुनी कीमत देनी होती है। अपनी वेबसाईट पर कॉलेज ने एक ऐसे पोर्टल का लिंक दिया हुआ है जिसमें सत्यापित किराये की जगहों की सूची है- उम्मीद यह है कि छात्र ऑनलाइन इश्तिहारों और सामुदायिक बुलेटिन बोर्डस के विज्ञापनों को देख कर अधिक भीड़भाड़ वाले असुरक्षित और सस्ते रहने के स्थानों की जगह ये अधिक सुरक्षित विकल्प चुनेंगे। लेकिन डाटाबेस में केवल दर्जन भर विकल्प ही दिए गए हैं, जिस से इस मसले का हल नहीं निकल सकता, और इसीलिए Sheridan, जिनकी अंतरराष्ट्रीय छात्र आबादी 2015 से 2017 तक 34 प्रतिशत बढ़ी, ने दाखिल लेने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को सीमित कर के 2018 में अपने होते हुए विकास पर रोक लगा दी।

“हमने Brampton के अपने कॅम्पस पर यह कमी करने पर इस लिए ध्यान केंद्रित किया, चूंकि जिन समुदायों की हम सेवा कर रहे थे और जिन साझेदारों का हमारे लिए महत्व है, उन्होंने बुनियादी सामाजिक ढांचे के बारे में चिंताऐं व्यक्त की,” Sheridan College के अध्यक्ष Janet Morrison कहती हैं।

हर सेमेस्टर, मनताजवीर अपनी कॉलेज की फीस के पैसे देने के लिए जहां से भी हो सकता था, वहाँ से उधर लेता था : अपनी ज़मीन गिरवी रख कर $3,000 का ऋण लेने वाले अपने माता-पिता से, Vancouver में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार से $2,000, $1,000 अपने क्रेडिट कार्ड प। अगर और पैसा बकाया होता था तो वह अपने माता-पिता से और माँगता था।

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मनताजवीर सिंह के लिए, सेंटेनियल कॉलेज में अपनी फीस भरना और ब्रैंपटन में सफल होने का दिखावा करने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है।Baljit Singh/The Globe and Mail

उसे लगा कि जैसे भारत छोड़ने से पहले उसने उन छात्रों के WhatsApp अवतार देखे थे, ठीक उसी तरह उसे भी वह भ्रम बनाए रखने की ज़रूरत है। उसने कनाडा में रहने के पहले दो साल तक अपने लिए कुछ नहीं खरीद, लेकिन जब पहली बार वह अपने घर वापिस लौट रहा था, उसने Reebok का एक ट्रैक सूट और Adidas के जूतों की एक जोड़ी खरीदी। उसे पता था उसे भूमिका तो निभानी ही पड़ेगी।

जब वह कनाडा में था, तो अकेलापन उसे खाए जा रहा था। कई बार तो केवल बस में किसी माता/पिता को अपने बच्चे को गले लगाने, या मॉल में किसी परिवार को एक साथ चलते देख कर ही श्री सिंह को बहुत अवसाद होने लगता था – परिवार से करीब होने की यादें बहुत दूर दिखाई देती थीं।

“कई बार तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं केवल शारीरिक रूप से ज़िंदा हूँ, लेकिन मानसिक रूप से मर चुका हूँ, “उसने कहा।

वह Centennial College के द्वारा उपलब्ध सलाहकारिता सेवाओं को लेने के लिए दो बार गया, लेकिन सलाहकार गोरा था और केवल इंग्लिश में बात करता था। कॉलेज का एक निजी बीमा कंपनी द्वारा एक छात्र सहयोग प्रोग्राम है, जो 100 से ज़्यादा भाषाओं में छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सलाह देता है, लेकिन वह आमने-सामने बैठ कर उपलब्ध नहीं है।

“जब आप अकेले होते हो, तो आप दिमाग से बात नहीं करना चाहते, आप दिल से बात करना चाहते हो, है ना”? मनताजवीर कहता है। “अगर मैं आपसे पंजाबी में बात कर रहा हूँ, तो मैं अपने दिल से ज़्यादा बात करने वाला हूँ।”


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हरजोत सरवारा ब्रैंपटन में एक दोस्त के घर के बाहर, अपनी बीवी मनप्रीत कौर और बेटी मेहरीन कौर के साथ खड़े हुए।BALJIT SINGH/The Globe and Mail

जब हरजोत सरवारा ESS Global के चंडीगढ़ के ऑफिस में घुसे, तो एक भर्तीकर्ता ने उसके रिज्यूमे को देखा और बताया कि चूंकि उन्होंने छह साल पहले भारत में अपनी शिक्षा पूरी की थी, इसलिए दाखिला मिलना मुश्किल साबित हो सकता है – वे उस छात्र भागीदार कार्यक्रम (स्टूडेंट पार्टनर्स प्रोग्राम) के लिए अर्हता प्राप्त नहीं करेंगे जिसमें इतने सारे छात्रों ने दाखिल लिया है और उसे पहले ही ज़्यादा पैसे जमा करवाने होंगे।

दाखिला करवाने वाले ने उसे बताया कि अगर वे कनाडा जाना चाहते है, तो वह उन्हें B.C. के एक कॉलेज में एक सेल्स प्रोग्राम में दाखिल करवा सकता है। इस से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि श्री सरवारा की मकैनिकल इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि थी और वह AutoCAD ड्राफ्टर के रूप में काम कर चुके थे।

ESS Global ने उनसे शिक्षा संस्थान से दाखिले के प्रस्ताव के लिए $500 लिए और फिर उन्हें बताया कि उन्हें वहां अपने पहले साल और साथ में तीन महीने के रहने के खर्च के भुगतान के लिए 25,000 डॉलर और देने की ज़रूरत है। उसने पता किया और गणना की कि इन सब की कुल लागत तो लगभग 17,000 डॉलर ही होनी चाहिए और पूछा कि अन्य शुल्क क्या थे।

“यही पैकेज हैं – आप इसको लेना चाहते हो या छोड़ना चाहते हो?” भर्ती करने वाले ने उन से पूछा। श्री सरवारा ने मना कर दिया।

बाद में उन्होंने, एक वकील की मदद से दूसरे शिक्षा संस्थान में दाखिला लेने के लिए $1,700 खर्च किए, लेकिन आवेदन सही कागज़ात नहीं देने की वजह से नामंज़ूर कर दिया गया।

दाखिले की मशीन की सीमा हद से भी ज़्यादा आगे और बढ़ गई जब एक अन्य एजेंट - जिसे श्री सरवारा एक निजी कैरियर कॉलेज, CDI College द्वारा नियोजित एक दाखिले का काम करवाने वाला एक उपठेकेदार समझते थे - ने उन्हें Montreal के करियर कॉलेज परिसर में भर्ती कराने के लिए $ 1,700 ले लिए।

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पटियाला में IELTS (इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम) कोचिंग के विज्ञापन पूरी रोड पर लाइन से लगे हुए।PRIYANKA PARASHAR/The Globe and Mail

भारत का इतना बड़ा यह उद्योग, जिसमें इतने ज़्यादा लोग लगे हुए हैं, यहाँ पर दाखिले की प्रक्रिया में शोषण के मामलों के खिलाफ कुछ कर पाना कठिन है। चंडीगढ़ के एक इंग्लिश अखबार, The Tribune के अनुसार, केवल पंजाब भर में ही मानकीकृत इंग्लिश टेस्ट लेने वाले छात्रों को IELTS की कोचिंग देने के लिए 5,000 से 6,000 केंद्र खुले हुए हैं। 2018 में Niagara College ने उन हजारों अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दोबारा टेस्ट लिया, जिन पर उनको भाषा प्रवेश परीक्षा में धोखाधड़ी वाले IELTS स्कोर प्रदान करने का संदेह था, क्योंकि बहुत से लोग खराब इंग्लिश के कारण क्लास में संघर्ष कर रहे थे।

अप्रवासन, नागरिकता और शरणार्थी कनाडा की प्रवक्ता, Julie Lafortune ने एक ईमेल में कहा कि उन्होंने 2019 में भारत में एक ऐसे विज्ञापन अभियान के लिए भुगतान किया था, जिसका काम भावी छात्रों को अप्रवास एजेंट या भर्तीकर्ता के रूप में काम कर रहे जालसाज़ों के बारे में अवगत कराना, और जिन छात्रों का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया है, उन्हें लगातार दोबारा आवेदन करते रहने से रोकना था।

श्री सरवारा को आखिरकार वेब डिज़ाइन पढ़ने के लिए CDI कॉलेज में दाखिला मिल गया, और उनके परिवार को उसका भुगतान करने के लिए $20,000 का कर्ज़ लेना पड़ा। ढाई साल के बाद, उन्हें अपने माता-पिता से अपना खर्चा पूरा करने के लिए लगातार और पैसे भेजने को कहना पड़ा।

उन्हें जल्द ही पता चल गया कि करिअर कॉलेज सरकार द्वारा वित्त पोषित उत्तर-माध्यमिक संस्थानों से काफी अलग तरीके से काम करते हैं। कई प्रोग्रामों के लिए तो क्लास सिर्फ़ सप्ताहांत पर ही होती थीं जिस से छात्र पूरे हफ्ते के दौरान काम कर सकें।

अपनी क्लास के पहले कुछ दिनों में ही वे यह देख कर चकित रह गए कि तकरीबन हर दूसरा छात्र भारतीय था। अधिकतर छात्र किशोर थे और कोर्स की सामान्य बातों के लिए भी तैयार नहीं दिख रहे थे। “आपको मालूम है वे मुझ से क्या कहते थे? ‘भाई, मेरी फाइल सेव कर दो। मुझे फाइल सेव करनी नहीं आती।” उन्होंने बताया।

पिछले दिसंबर में, Quebec की सरकार ने 10 निजी कॉलेजों को, उनके दाखिले की प्रक्रिया और संचालन की जांच करते हुए, कनाडा में छात्र वीज़ा प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों द्वारा आवश्यक प्रमाण पत्र जारी करने से रोक दिया। इस से भारत के उन हजारों छात्रों के बीच खलबली मच गई जिनके आवेदन और स्वीकृति, निलंबन हटने के बाद भी अधर में लटकी हुई थी।

Indus Community Services के कार्यकारी निदेशक गुरप्रीत मल्होत्रा का कहना है कि वे कनाडा के निजी कॉलेजों को शिक्षा का नहीं बल्कि अप्रवास का व्यवसाय मानने लगे हैं।

“कॉलेजों को आसानी से पैसा मिल रहा है, और छात्रों को कनाडा आने का आसान रास्ता मिल रहा है।”


बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के

हिसाब से ओंटारिओ के कॉलेज

2013 - 2020

Proportion of

international

students

Change

(percentage

points)

2013

2020

0

20

40

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100%

Canadore

+48

+42

Northern

+40

Centennial

Seneca

+39

+38

St. Lawrence

Cambrian

+37

+34

Sault

+33

Conestoga

St. Clair

+32

Georgian

+27

Fleming

+27

Fanshawe

+25

Niagara

+25

Confederation

+21

La Cité Collégiale

+17

+17

Sheridan

Mohawk

+16

+15

Algonquin

Durham

+13

Loyalist

+12

George Brown

+9

Collége Boréal

+8

+5

Humber

Lambton

-9

0

20

40

60

80

100%

CHEN WANG AND MURAT YÜKSELIR /

THE GLOBE AND MAIL, SOURCE:

ONTARIO MINISTRY OF COLLEGES AND UNIVERSITIES

 

बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के

हिसाब से ओंटारिओ के कॉलेज

2013 - 2020

अंतर्राष्ट्रीय

छात्रों का

अनुपात

बदलाव

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Canadore

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Northern

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Conestoga

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St. Clair

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La Cité Collégiale

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Sheridan

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Durham

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George Brown

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Collége Boréal

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CHEN WANG AND MURAT YÜKSELIR /

THE GLOBE AND MAIL, SOURCE:

ONTARIO MINISTRY OF COLLEGES AND UNIVERSITIES

 

बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के हिसाब से ओंटारिओ के कॉलेज

2013 - 2020

बदलाव

(प्रतिशत बिन्दु)

2013

2020

अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का अनुपात

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Canadore

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Northern

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Georgian

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Fleming

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Collège La Cité

+17

Sheridan

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Mohawk

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Durham

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CHEN WANG AND MURAT YÜKSELIR / THE GLOBE AND MAIL, SOURCE:

ONTARIO MINISTRY OF COLLEGES AND UNIVERSITIES

 

2020 में, Khalsa Aid Canada, अंतर्राष्ट्रीय NGO के घरेलू चैप्टर ने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के पक्षद्धारक समूह, One Voice Canada के साथ 303 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का एक सर्वे लिया (जिसमें 98 प्रतिशत छात्र भारत के थे)। उन्होंने पाया कि उन छात्रों में से 30 प्रतिशत नैदानिक या बहुत ज़्यादा अवसाद से ग्रस्त थे और 60 प्रतिशत “खराब स्वास्थ्य से पीड़ित थे।”

पिछले चार सालों में इसके गंभीर परिणाम पश्चिम Toronto में, सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट सेवाओं के लिए कई दक्षिण एशियाई लोगों द्वारा पसंद की जाने वाली सुविधा, Lotus Funeral Home and Cremation Centre के निदेशक कमल भारद्वाज को स्पष्ट हो चुके हैं। वे कहते हैं कि वे हर महीने तकरीबन चार या पाँच अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की मृत्यु के बाद के काम संभालते हैं, जिनमें से ज्यादातर उन्हें शक है कि आत्महत्या या ज़्यादा नशीले पदार्थों के सेवन से हुई होती हैं (अप्राकृतिक ढंग से हुई मृत्यु कोरोनर(मृत्यु समीक्षक) के ऑफिस में जाती हैं, उन्होंने बताया और उन परिणामों के बारे में उनको कोई खबर नहीं है)। उन्होंने हाल ही में जिस केस के लिए काम किया था, वह पंजाब से आए एक अंतर्राष्ट्रीय छात्र, प्रभजोत सिंह का था, जो Truro, N.S., में रहता था और उसे एक दोस्त के घर के बाहर छुरा घोंप कर मार दिया गया। इस घटना ने पूरे कनाडा के भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्र समुदाय को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने श्री भारद्वाज की कंपनी के द्वारा उसका शव भारत में उसके घर भिजवाने के लिए $100,000 इकट्ठे किए।

लवप्रीत सिंह ने ट्रेन के आगे कूदने के करीब एक साल पहले, अपने परिवार को बताया था कि उसकी पढ़ाई खत्म हो गई है और उसे नौकरी मिल गई है, लेकिन कनाडा में उसके जीवन का विवरण हमेशा ही स्पष्ट नहीं था।

“वह साफ़-साफ़ पैसे की वजह से संघर्ष कर रहा था … और हमेशा पैसे भेजने के लिए कहता रहता था। लेकिन उसने हमसे बात तो की होती, हम इसका कोई उपाय निकाल लेते,” उसके पिता ने कहा।

लवप्रीत की शिक्षा ने उस के परिवार को $50,000 के कर्ज़े में डुबो दिया, जिसमें से अधिकतर अब उसकी मौत के बाद सामुदायिक अनुदान के द्वारा चुकाया जा चुका है।

“मैं सोचता रहता हूँ कि मेरा बच्चा कितना अकेला हो गया होगा। मैं सोचता रहता हूँ कि उसने कितनी परेशानियाँ अकेले ही झेली होंगी। काश उसके पास कोई होता यह बताने के लिए कि सब ठीक हो जाएगा,” उसके पिता कहते हैं।

लवप्रीत सिंह की मृत्यु की खबर को बहुत कम मुख्य मीडिया कवरेज मिला लेकिन Brampton के छात्र समुदाय में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। One Voice Canada ने पिछले साल 10 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट की गई आत्महत्याएं गिनीं, जिनमें से चार पील क्षेत्र में हुई थीं।

पंजाबी समुदाय के आयोजकों के एक समूह ने एक कीर्तन – सिख प्रार्थना सभा – का आयोजन किया, लवप्रीत की स्मृति में और छात्रों द्वारा अपने संघर्ष के बार में खुल कर बताने के लिए एक फोरम के रूप में, जिन में से ज़्यादातर आर्थिक तनाव और अस्थिरता के कारण थे।

The Globe और Mail ने जितने भी मौजूदा या पूर्व छात्रों से बात की, उन सभी ने छात्र वीज़ा धारकों के लिए काम के 20-घंटे-प्रति-सप्ताह की सीमा के बारे में शिकायत की। लेकिन संघीय सरकार ने यह सीमा किसी कारणवश लगा रखी है: छात्रों से यहाँ पर शिक्षा परमिट पर आकर वास्तव में पढ़ाई करने की उम्मीद की जाती है।

कुछ लोग इस प्रतिबंध को मानते हैं और अपनी पढ़ाई के खर्चे और रहने-खाने के खर्चों वहन करते-करते और भी गहरे कर्ज़े में डूब जाते हैं; अन्य लोग पानी से अपना सिर बाहर रखने के लिए अवैध रूप से अतिरिक्त शिफ्टों में काम करते हैं।

श्री सरवारा समझाते हैं कि अस्थायी एजेंसियों के द्वारा काम मिलना तो आसान है, लेकिन खराब बात यह है कि वे छात्रों का फायदा उठा कर अक्सर उन्हें कम पैसे देते हैं। Montreal में एक कष्टदायी तीन महीनों के दौरान एक एजेंसी ने उनको Quebec के न्यूनतम वेतन $13.50 प्रति घंटा की जगह केवल $9.50 दिए।

महामारी-संबंधित नौकरी खोने का दंश अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को ज़्यादा लगा, क्योंकि वे कनाडाई आपातकालीन प्रतिक्रिया भत्ता (Canadian Emergency Response Benefit) पाने के पात्र नहीं थे, जिस से जाने कितने ऐसे लोगों की मदद हुई जिनकी नौकरी छूट गई थी। Sheridan College ने महामारी के पहले साल में छात्रों की कुछ मदद करने के लिए उन्हें $1-मिलियन से ज़्यादा छात्रवृत्ति वितरित की थी। स्थानीय गैर-लाभकारी पंजाबी समुदाय की स्वास्थ्य सेवाओं को कई बार ऐसे छात्रों के कॉल लेने पड़ते थे जिन्हें घर से निकाले जाने का डर था और उन्होंने अपने 2020 के बजट का ज़्यादातर हिस्सा किराना खरीदने के लिए गिफ्ट कार्ड या नकद देने में खर्च कर दिया, जिस से छात्र कम से कम खा सकें और अपना किराया दे सकें।

कुछ छात्र जिन्होंने उनसे संपर्क किया, वे घरों से निकाल दिए गए थे, और कारों और अपने दोस्तों के घरों में काउच पर सोने को मजबूर हो गए थे, गैर-लाभकारी स्वास्थ्य प्रोग्राम की मैनेजर मानवीर भंगु कहती हैं। आमतौर पर, इनमें से अधिकतर सिख छात्र स्थानीय गुरुद्वारे में जाकर मदद ले सकते थे, लेकिन महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों की वजह से यह भी असंभव हो गया था।

सुश्री भंगु की एजेंसी को खबर मिली कि L6P क्षेत्र में एक औरत, जो नए आए हुए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को क्वारंटीन करने के लिए थोड़े समय के लिए किराये पर घर दे रही थी, उनके द्वारा पैसे ना दिए जाने पर उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लेने की धमकी दे रही थी (उन्हें पासपोर्ट उसे देने पड़े थे जब छात्रों ने चेक-इन किया था)। एक बार एक छात्र को घर से बेदखल होने से बचाने के लिए सुश्री भंगु को एक मकानमालिक को आधी रात में इलेक्ट्रॉनिक रूप से पैसे भेजने पड़े।

वे कहती हैं कि उनकी एजेंसी केवल हैन्डआउट्स नहीं देना चाहती थी, बल्कि छात्रों को रिस्यूमे लिखने की वर्कशॉप और काम के लिए इंटरव्यू देने का प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त बनाना चाहती थी। वे कहती हैं कि इस तरह के सहयोग को बहुत उत्साह के साथ स्वागत नहीं मिला।

“मैंने यह पाया है कि उनमें से अधिकतर लोग अपनी परिस्थितियाँ बदलने के इच्छुक हैं ही नहीं'” वे बताती हैं। “मेरा मन कुछ हद तक यह माने को तैयार नहीं होता, लेकिन शायद उन लोगों को लगता है ‘ठीक है, मुझे मुफ़्त में पैसा मिल सकता है। तो मैं काम पर क्यों जा रहा हूँ?’ मुझे विश्वास है कि उनमें से अधिकतर अपने काम के माहौल से घबराए हुए हैं, और उन्हें लगता है ‘मुझे ये सब नहीं करना। मैं बस यह सब खत्म होने का इंतजार कर रहा हूँ जिस से मैं वापिस घर जा सकूँ।”

सामुदायिक चिंताऐं रचनात्मक हो सकती हैं, लेकिन अधिकतर समय वे विरोधी होती हैं। Sheridan College के Brampton कॅम्पस की गली के सामने का प्लाज़ा, जो कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की प्रिय हैंग आउट जगह है, वहाँ पर एक साइन है जो छात्रों को वहाँ पर घूमने से मना करता है। 2017 में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के दो गुटों में आपस में झगड़ा होने की वजह से, इस आबादी को दुश्मन की तरह देखा जाने लगा, स्थानीय न्यूज केंद्रों और सोशल मीडिया पर उन्हें हिंसक उपद्रवी बुलाया जाने लगा। कुछ अन्य निवासियों ने शिकायत की है कि छात्र अच्छी तरह मिल जुल कर नहीं रहते – वे सार्वजनिक जगहों पर चप्पलें पहनते हैं, वे केवल अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के साथ समय बिताते हैं और वे इंग्लिश में बहुत कम बात करते हैं।

अर्शदीप सिंह, जो 2017 में पंजाब के फतेहगढ़ साहिब से Brampton में Centennial College में आए थे, उन्होंने इस शहर में संचालित होने वाला अप्रवासी स्थिति के पदक्रम को समझ लिया है। “यदि आप नागरिक हैं , तो आप सबसे ऊपर हैं,” श्री सिंह, जो अब एक लंबी दूरियों पर ट्रक चलाने वाले ड्राइवर हैं, कहते हैं। “यदि आप यहाँ के स्थायी निवासी हैं, तो आपके साथ दूसरों से बेहतर व्यवहार किया जाता है। अगर आप यहाँ वर्क पर्मिट पर हैं, तो उन्हें पता होता है कि आप कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। आपको अपने बराबर का नहीं समझ जाएगा। अगर आप एक छात्र हैं, तो आप फूड चेन में सबसे नीचे हैं।”

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"अगर आप एक छात्र हैं तो आप फूड चेन के बिल्कुल नीचे की तरफ हैं,” ब्रैंपटन के अर्शदीप सिंह कनाडा में अप्रवासों के पदक्रम के बारे में कहते हैं।Baljit Singh/The Globe and Mail

The Globe से बात करने पर श्री सिंह और अन्य लोगों ने भी बताया कि छात्र संघर्ष करते समय समुदाय के उनसे बड़े और अधिक स्थापित पंजाबी अप्रवासियों से मदद लेने में सहज नहीं महसूस करते। छात्र अगर बेसमेंट में रहते हैं तो उनका मज़ाक बनाया जाता है, लेकिन अगर वे आराम से रहना शुरू कर देते हैं तो उन्हें शक की नज़र से देखा जाता है। अगर वे कार खरीदते हैं, जो कि Brampton जैसे फैले हुए शहर में कई नौकरियों के लिए जरूरी है, तो उन्हें अपनी औकात से बाहर जाने के लिए ताने मारे जाते हैं, श्री सिंह बताते हैं। अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की का सहयोगी नेटवर्क भी ज़्यादातर वैसी ही चुनौतियों का सामना करने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से बना होता है।

26 साल कि नवनीत कौर, Brampton में अपने साथ रहने वाले पाँच छात्रों की माँ जैसी ही हो गई हैं, और उन में से सभी घर से पहली बार दूर रहने वाले मौजूदा या पूर्व छात्र हैं। उन्हें बात करने के बीच-बीच में अपने से छोटे लोगों को चिल्ला कर निर्देश देने पड़ते हैं। वो एक पर पंजाबी में चिल्लाती हैं “स्टोव बंद करो!”। दूसरे से कहती हैं “सीढ़ियों पर दौड़ो मत, चोट लग जाएगी!”

सुश्री कौर North Bay, Ontario के Canadore College में दाखिल लेने से पहले ही पूरी तरह से अर्हता प्राप्त इंजीनियर थीं, और बताती हैं कि अमृतसर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से ग्रैजुएट करने वाली उनकी क्लास के 180 छात्रों में से हर एक यहाँ कनाडा में रहता है। उनके माता-पिता चाहते थे कि वे अमृतसर में रहें और शादी कर लें, लेकिन वे कुछ और करना चाहती थीं और उन्होंने खासतौर पर स्थानीय पॉप संस्कृति में इस देश के बारे में फैली हुई बातों से प्रभावित होकर, कनाडा में जीवन बसाने का फैसला लिया।

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“मैं झूठ नहीं बोलने वाली हूँ, मैंने कनाडा चुना क्योंकि सभी पंजाबी गायक अपने गानों में बताते रहे कि कनाडा कितनी बढ़िया जगह है” नवनीत कौर कहती हैं।Baljit Singh/The Globe and Mail

“मैं झूठ नहीं बोलने वाली हूँ, मैंने कनाडा चुना क्योंकि सभी पंजाबी गायक अपने गानों में बताते रहे कि कनाडा कितनी बढ़िया जगह है'” उन्होंने कहा। “आज का पंजाबी संगीत पंजाब से ज़्यादा कनाडा के बारे में हैं”।

यहाँ पर ज़िंदगी उन गानों में किए गए वादों से काफ़ी अलग है। सुश्री कौर Brampton में Lululemon के वेयरहाउस में काम करती हैं। उन्हें अपना काम पसंद है, लेकिन उनकी महीने की तनख्वाह का आधा हिस्सा उनके माता-पिता को चला जाता है। “कई बार, ऐसा लगता है कि मैं किसी मशीन का कोई पुर्ज़ा हूँ,” उन्होंने कहा।

Sheridan College की Janet Morrison चाहती हैं कि सुश्री कौर जैसे छात्र पॉप संस्कृति में प्रचारित कल्पनाओं को आँखों में ना सँजो कर, कनाडा के जीवन के बारे में साफ़ चित्र लेकर यहाँ आएं। भारत में ग्राउन्ड पर, कॉलेज छात्रों को यह सिखाने के लिए कि उनसे क्या उम्मीदें की जा सकती हैं, जीवन असल में कैसा है और वे मदद के लिए कहाँ जा सकते हैं, एक प्रस्थान से पहले का प्रोग्राम चला रहा है। इसमें मॉक लेक्चर हैं जिनमें आप भाग ले सकते हैं, निर्वाह पर होने वाले खर्चों के बारे में और उनके आवास विकल्पों के बारे सेशन है। कई बार अगर ऐसा लगता है कि कोई संभावित छात्र Sheridan के लिए ठीक नहीं है या उसकी ऐसी आकांक्षाएं हैं जो शेरीडन द्वारा दिए जा रहे प्रोग्रामों के अनुरूप नहीं हैं, तो Sheridan उन्हें कनाडा की दूसरी संस्थाओं को रेफर कर देता है।

लेकिन सुश्री Morrison जानती हैं कि कि भारत की ओर काम पर्याप्त नहीं है। इस सर्दी में, Sheridan, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से संबंधित मसलों, खासतौर पर आवास के मसले से निपटने के तरीकों पर बात करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य, पुलिस और अग्नि शमन सेवाओं समेत पील क्षेत्र की नगरपालिका के सदस्यों के साथ एक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है।

Indus Community Services के श्री मल्होत्रा कहते हैं, कि यदि संघीय सरकार किसी और बड़ी आर्थिक और आव्रजन रणनीति के तहत इतने सारे छात्रों को यहां ला रही है, तो उनकी बेहतर सहायता करने की उनकी ज़िम्मेदारी है।

“कनाडा ने यह परिस्थितियाँ इस तरह इसलिए बनाई हैं, ताकि हम आप्रवासियों को छोटी उम्र में पकड़ सकें। उनके बच्चे होंगे, वे यहाँ घर बनाएंगे, इस तरह की चीजें होंगी और कनाडाई समुदाय का हिस्सा बन जाएंगे,” वे कहते हैं। “अगर यही आपका लक्ष्य है, तो आपको उन्हें यहाँ बसने में जितना हो सके, उतना सकारात्मक अनुभव देना चाहिए”।

संपादक का नोट: इस कहानी के एक पूर्व संस्करण में सिटी काउंसिल द्वारा स्वीकृत Brampton के एक सलाहकार के कुछ कथन शामिल थे। संदर्भों को हटाने के लिए उस का अद्यतन किया गया है।

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